बेनीपट्टी में निजी स्कूलों के संचालकों की मनमानी से अभिभावकों में परेशानी, अधिक खर्च फिर भी शिक्षा में गुणवत्ताओं की कमी
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मधुबनी
मोहन झां
जिले के बेनीपट्टी अनुमंडल मुख्यालय में निजी स्कूलों के संचालक के द्वारा किए जा रहे मनमानी से क्षेत्र के बच्चों का अभिभावक काफी परेशान है। आखिर सरकारी अधिकारियों के द्वारा इन विद्यालयों पर नकेल क्यों नहीं कसा जा रहा है। जिसके कारण निजी स्कूलों की मनमानी से अभिभावकों की जेब कट रही है। मार्च का महीना बच्चों की परीक्षा के लिए जाना जाता है, तो अप्रैल महीना निजी स्कूलों की मनमानी के आगे अभिभावकों की आर्थिक स्थिति की परीक्षा लेता है। किताब, कॉपी, ड्रेस, जूता के लिए अभिभावकों की दौड़ स्कूल और स्कूल द्वारा बताई गई दुकानों के बीच लगी रहती है। हर बार की तरह निजी स्कूल कमीशन का खेल खेलने की राह पर इस बार भी निकल गए हैं। बेनीपट्टी के कई नामी और बड़े स्कूलों द्वारा विद्यार्थियों को सीधे स्कूल से ही किताब बेची जा रही है।कॉपी भी ब्रांडेड लेने का दबाव है। लिहाजा यह तय है कि काॅपी का मूल्य भी अभिभावकों को सामान्य से ज्यादा देना पड़ता है। जिन स्कूलों ने अभिभावकों को किताब का लिस्ट दिया है, उन स्कूलों ने बुक लिस्ट में दुकान के नाम भी दिए हैं, जहां से अभिभावकों को किताबें खरीदने को कहा गया है। पूरे बाजार ढूंढ़ने के बाद भी किताबें सिर्फ वहीं मिलेंगी, जिस दुकान की सांठ-गांठ स्कूल के साथ है। किताबें एमआरपी पर मिल रही हैं।जबकि प्राइवेट पब्लिकेशन की किताबों पर अमूमन 20 से 50 प्रतिशत तक की छूट दी जाती है। लेकिन किताब खरीदने वाले अभिभावकों को यह छूट मिलने के बदले छूट की रकम कमीशन के रूप में स्कूलों के खाते में चली जाती है। इधर डीजल की दाम में वृद्धि के बाद स्कूलों ने बस भाड़े,अन्य वाहन भाड़े में बढ़ोतरी की है।बढ़ते महंगाई के कारण लोगों की आर्थिक स्थिति खराब है। फिर भी वे अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं। अभिभावकों की इस मजबूरी का फायदा निजी स्कूल उठाने में लगे हैं। बच्चों को स्कूल का ड्रेस, जूता, टाई, भी सप्ताह में बदले जाते रहते हैं।सैकड़ो अभिभावकों पर अनावश्यक आर्थिक लोड पड़ता है। दबी जुबान से अभिभावक स्कूल प्रबंधन की मनमानी को गलत ठहरा रहे हैं, लेकिन बच्चों के कारण चुप रहते हैं। सरकारी स्कूल की दुर्दशा ने निजी स्कूल को मनमानी करने का छुट दे दिया है। आजकल एडमिशन का मौसम है। अखबार हो या अन्य माध्यम सभी जगह स्कूल अपने-अपने ढंग से प्रचार कर रहे है।अपनी उपलब्धियां गिनाकर बच्चों और अभिभावकों को अपनी तरफ आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। बेनीपट्टी के आधे दर्जन निजी स्कूलों में राष्ट्रीय सहारा प्रतिनिधि ने जब शिक्षा में गुणवत्ता की बातों की जांच की तो पता चला की विद्यालय के संचालक के द्वारा शिक्षकों को कम से कम मानदेह पर रखा जाता है। अनुभवी शिक्षकों की कमी, विषय बार शिक्षकों का अभाव, मुख्य कारण है। स्कूल संचालक अपने प्रगति के लिए स्कूल चलाते हैं। मजबूर अभिभावक अपने बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए निजी स्कूलों में भेजते हैं पर उन्हें बच्चों पर किए जा रहे खर्च के आलोक में बच्चों में शिक्षा की गणवत्ता नहीं मिलने के कारण परेशान रहते हैं। दूसरी और सरकार के द्वारा दिए गए निजी स्कूलों का गाइडलाइन का पालन एक भी स्कूल के संचालक नहीं करते हैं। इसकी उच्च स्तरीय जांच होना भी आवश्यक है। एक अभिभावक ने अपना नाम नहीं छापने के बाद बताया कि निजी स्कूलों की मनमानी रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं। फीस सरकार तय करे। इसी के साथ किताबें, कॉपियां, ड्रेस, बस्ते, पानी की बोतल, जूते-मौजेे जैसी सामग्री किसी दुकान विशेष से खरीदने की बाध्यता पर रोक लगाई जाए। शिक्षा, चिकित्सा, पानी-बिजली जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराते समय मुनाफा नहीं देखा जाना चाहिए। निजी स्कूलों की अनुमति उन्हें ही दी जाए, जो सेवा भाव से स्कूल चला सकें।