कारीगर सरस्वती माता की प्रतिमा निर्माण में जुट गए
प्रतिमा निर्माण करते कलाकार
खजौली
प्रखंड क्षेत्र में मां सरस्वती पूजा को लेकर दिन प्रतिदिन उत्साह में बढ़ोतरी होता जा रहा। जानकारी हो की मां सरस्वती की पूजा इस बार 14 फरवरी को होनी है। माघ महीने के शुक्ल पक्ष के पांचवे दिन यानी पंचमी तिथि को बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न गांव में कारीगर प्रतिमा निर्माण में जुट गए है। विभिन्न संगठन व शिक्षण संस्थान मां सरस्वती की पूजा की तैयारी में जुट गए है। बाजारों में दुकानों पर भी मां सरस्वती की छोटी आकर्षक मूर्ति मूर्ति साहित्य पढ़ते, हंस पर सवार, वीणा वादिनी समेत अन्य रूपों में एलईडी लाइट व अन्य समानों से सुसज्जित मिल रही है। कैलेंडर की दुकानों पर भी मां सरस्वती के आकर्षक कैलेंडर उपलब्ध दिखाई दे रहे है। हवा के साथ धूप निकलते ही मूर्तिकार प्रतिमा निर्माण दिन रात युद्ध स्तर पर जुटे हुए नजर आ रहे है। सजावटी समानों की दुकानों पर भी अच्छी खासी भीड़ देखी जा रही है । मां सरस्वती की पूजा को लेकर विद्यार्थियों में काफी उत्सुकता देखा जा रहा है।आलम यह है की विभिन्न पूजा समिति के सदस्य व अन्य लोग बेहतर मूर्ति निर्माण को लेकर लोग कारीगरों के पास पहुंच रहे हैं। मूर्ति के लिए एडवांस पैसे भी दिए जा चुके हैं। पूजा समिति के लोग मूर्तिकारों को अपने अनुरूप बेहतर से बेहतर मूर्ति बनाने की सलाह भी दे रहे हैं।प्रखंड के ठाहर गांव स्थित मां सरस्वती की प्रतिमा बना रहे मूर्ती कार जयनगर गौबराही गांव निवासी नंद किशोर पंडित बताते है। ने बताया कि पहले मूर्तिकार अपने हिसाब से अधिकांश मूर्ति का निर्माण कर बेचते थे।लेकिन अब अधिकांश मां सरस्वती पूजा समिति के द्वारा ज्यादातर मूर्ति ऑर्डर पर ही बनवाते है। हमारे द्वारा बनाई गई मूर्ति में हंस पर सवार, वीणा बजाते हुए मां सरस्वती ,कमल के फूल के ऊपर हंस, सिंहासन पर विराजमान व रथ पर सवार मां सरस्वती समेत कई आकृति मां सरस्वती की दी गई है। 3 हजार रुपये से लेकर 8 हजार रुपए तक की मूर्ति बनाई है। मूर्ति की हाइट 4से 10फीट की है। हालाकि छात्र जो ग्रुप बनाकर पूजा कर रहे है उनके द्वारा छोटी मूर्ति ज्यादा पसंद की जा रही है। शैक्षणिक संस्थानों व पूजा समिति के लोगो द्वारा बड़ी मूर्ति का ऑर्डर दिया जा रहा है। वहीं मूर्ति कार बताते है कि पिछले बर्ष के अपेक्षा इस बर्ष मूर्ति की बिक्री में तेजी आई है।लेकिन पहले की अपेक्षा बचत कम हो गया है।पहले कहीं कहीं इक्का दुक्का मूर्तिकार मूर्ति का निर्माण करते थे। वहीं, अब गांवों में भी कई कारीगर मूर्ति का कार्य कर रहे हैं। मिटटी भी काफी महंगा हो गया है, 2000 रुपये टेलर आ रहा है।