सिद्धपीठ उच्चैठ भगवती, से महाकवि कालिदास का इतिहास विश्व विख्यात है, कालिदास गढ़ से आज भी मिट्टी ले जाते हैं देश-विदेश के लोग
कलाकृति प्रतिमा साक्षी स्वरूप
मधुबनी
मोहन झा
मिथिला विश्व के ऐतिहासिक धार्मिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण माना जाता रहा है। जो धार्मिक ग्रंथो शास्त्रों के अनुसार रामायण काल महाभारत काल के अलावे प्राचीन सभ्यता के बीच भी मिथिला का नाम देवनागरियों के नाम से जाना जाता है।
खासकर धार्मिक अनुष्ठानों में विश्व स्तर पर अपना पहचान बन चुकी है। मिथिला के उच्चैठ भगवती स्थान महाकवि कालिदास, से से जुड़ा हुआ है इसका एक इतिहास आज भी साक्षी है जो प्रमाणित करता है कि महाकवि कालिदास उचित भगवती के आशीर्वाद से ही विश्व कवि बने। मिथिला की नगरी हृदय स्थली बिहार के भारत नेपाल सीमा पर अवस्थित मधुबनी जिले के पश्चिमी क्षेत्र बेनीपट्टी थाना से 5 किलोमीटर पर देश के 51 सिद्ध पीठ मैं से एक सिद्ध पीठ उच्चैठ भगवती स्थान माना गया है।
जहां कलुआ नाम के मूर्ख सेवादार को छिन्नमस्तिका उच्चैठ भगवती के वरदान से विश्वकवि कालिदास बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इतिहास साक्षी है की उच्चैठ भगवती स्थान नदी किनारे अवस्थित है और नदी के उस पार उक्त समय महाविद्यालय यानी गोकुल विद्यालय अवस्थित था। आज भी कालिदास विद्यापति विज्ञान महाविद्यालय उच्चैठ अवस्थित है। जहां से प्रत्येक दिन विभिन्न छात्रों के द्वारा रात्रि अवस्था में उच्चैठ भगवती स्थान मैं आकर माता छिन्नमस्तिका दुर्गा की पूजा अर्चना आरती किया करते थे।
परंतु एक समय नदी में बाढ़ के पानी से उछाल आ गई थी। जिसके कारण एक भी छात्र प्रत्येक दिन के अनुसार मां भगवती का पूजा अर्चना करने को तैयार नहीं हुए, जिस पर गुरुकुल के प्रधान ने मूर्ख कलुआ जो विद्यालय में कुक यानी सेवादार का काम करता था उसे माता की पूजा अर्चना करने को लेकर भेजा गया मूर्ख कलुआ नदी को तैर कर भगवती के मंदिर में प्रवेश कर पूजा अर्चना की। तत्पश्चात साक्ष्य के लिए माता जगदंबे के मुख पर कालिक पूछने का प्रयास किया उक्त समय मां भगवती प्रगट हुई और कलुआ को वरदान दिया कि तुम आज रात गोकुल में रखें पुस्तकों को स्पर्श करोगे तो पूरा ज्ञान तुम्हें प्राप्त हो जाएगा। कलुआ ने ऐसा ही किया और दूसरे दिन गोकुल में पढ़ रहे छात्रों को पढ़ने के समय हर बात पर समझाने का प्रयत्न किया सब छात्रों ने ज्ञान होने की रहस्य कलुआ से पूछा कलुआ ने सभी बातों की जानकारी विद्यालय के प्रधान और छात्रों को दी तब से मूर्ख कलुआ विश्व कवि के रूप में विख्यात हो गया जो आज पूरे विश्व में अपनी पहचान छोड़ चुके हैं।
यही इतिहास उच्चैठ भगवती और मूर्ख कलुआ यानी कालिदास से जुड़ा हुआ है। इसी को देखकर राज्य सरकार ने उच्चैठ कालिदास को राजकीय समारोह का दर्जा दिया और आज दूसरे वर्ष राजकीय सम्मान के साथ उत्सव किया जा रहा है। कालिदास का जो गढ़ वर्तमान में भी स्थापित है जहां ऐतिहासिक कलाकृति लोगों को इतिहास बताता है वहां की मिट्टी आज भी देश-विदेश के लोग ले जाते हैं अपने बच्चों के भविष्य को ज्ञानवर्धक बनाने के लिए कहा जाता है कि माथे में मिट्टी लगाने से महाकवि कालिदास की तरह ज्ञान का अर्जुन होता है। पूरे वर्ष देश-विदेश के हजारों लोग इस स्थान पर आकर चिंतन मनन करते हैं।