मिथिलांचल की बेटी का कमाल: हरित सुवर्ण क्रांति का प्रगाज:-डीडीसी
प्रज्वलित कर उद्घाटन करते डीडीसी
बिस्फी
प्रखण्ड क्षेत्र के घाट भटरा ग्राम में जलकुम्भी से बैग/ पर्स बनाने की एक नई कुटीर उद्योग का उद्घाटन मधुबनी के डीडीसी डॉ विशालराज ने फीता काट एवं दीप प्रज्वलित कर किया। इस अवसर पर विशालराज ने एक स्कूल छात्रा के द्वारा की गई इस प्रयास की भूरी भूरी सराहना की। विशेषकर उन्होंने इस बात पर खुशी ज़ाहिर कि आद्या ने एक सोशल इन्ट्रप्रेन्यूर के रूप में गांव के सबसे गरीब तबकों, निचले वर्गों को कैसे आर्थिक लाभ पहुंचे, मतलब सोशल इम्पैक्ट इसका ख्याल रखकर गांव में एक कुटीर उद्योग की स्थापना की।उन्होंने इस अवसर पर वेस्ट से वेल्थ अवधारणा पर अपना मंतव्य भी प्रकट किया। उन्होंने यह आश्वासन भी दिया की राज्य सरकार इसमें अपने विभिन्न स्कीमों के तहत जितना सहयोग कर सकती है, सहयोग करेगी और हर तरह की मदद दी जाएगी। इस अवसर पर बिस्फी के वीडियो सीओ व अन्य अधिकारी तथा घाट भटरा और नजदीक के मुखिया सरपंच और ग्राम की जनता बड़ी संख्या में वहाँ एकत्रित हुई थी। मिथिलांचल की बेटी कुमारी आद्या मिश्र जो कि दिल्ली स्थित डीपीएस आरकेपुरम की बारहवीं क्लास की छात्रा है, ने आज साबित कर दिया कि मिथिलांचल में प्रतिभा और मौलिक सोच की कोई कमी नहीं है। साल पहले अपने नानी ग्राम प्रवास के दौरान आद्या ने यह महसूस किया कि गांव के आसपास के सभी तालाबों, पोखरों छोटे छोटे नदी नालों में जलकुंभी का बहुत बड़ा प्रकोप है। इस विषय पर उन्होंने गांव के बड़े बुजुर्गों और मछुआरों से काफी बातचीत की। उन्हें यह पता चला की हर साल मछुआरे इसको साफ करते हैं फिर अगले कुछ दिनों में ही इसका प्रकोप बढ़ जाता है और पूरा तालाब इससे आच्छादित हो जाता है। जिससे मछुआरों को ना केवल कम मछली की फसल प्राप्त होती है बल्कि इसके हटाने से पोखर के चारों तरफ बहुत गंदगी भी फैल जाती है। दिल्ली आकर ने इस विषय पर गहरी छानबीन की कि जलकुंभी को कैसे हटाया जाए और इसका कैसे आर्थिक दोहन किया जा सकता है। इस क्रम में उन्होंने कई साइंटिस्ट, उद्योग से जुडे लोगों से बातचीत की और उनका रिसर्च पेपर पढ़ा। फिर उन्होंने फिज़िबिलिटी का अध्ययन करते हुए यह पाया कि यदि जलकुंभी से पर्स वैग डोरमेट इत्यादि हैंडीक्राफ्ट या उससे खाद बनाया जाए तो आसपास के लोगों को रोजगार भी मिलेगा। इसके लिए उन्होंने भटरा घाट के तीन चार व्यक्तियों को ट्रेनिंग वास्ते गुवाहाटी भेजाजहाँ उन्होंने 15 दिन की ट्रेनिंग ली तथा कैसे जलकुंभी को सुखाके उसके डंठल का उपयोग किया जाए, पर्स आदि बनाया जाए और इसके प्रोडक्ट की मार्केटिंग कैसे की जाए इस विषय पे ज्ञान प्राप्त किया।उनका कहना है कि यदि बिहार सरकार इसमें मदद करें तो हर उस जगह पर जहाँ जलकुंभी की अधिकता है एक कुटीर उद्योग स्थापित किया जा सकता है जिससे कि स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा और जलकुंभी को हटा कर तालाबों की स्थिति सुधारी जा सकती है जिससे की मछुआरों को भी मछली के फसल का अधिक से अधिक लाभ मिल सकता है।उन्होंने जलकुंभी को हरित सुवर्ण की संज्ञा दी तथा कहा कि यह एक पानी का खरपतवार है जो करीब करीब मुफ्त में ही उपलब्ध है तथा इसका जितना आर्थिक दोहन किया जाए वह स्थानीय स्तर पर रोजगार और आर्थिक संवर्धन के लिए काफी मददगार होगा। इसके तीन फायदे हैं पहला इकोनॉमिक इम्पैक्ट दूसरा सोशल इम्पैक्ट और तीसरा इकोलॉजिकल इम्पैक्ट।उन्हें उम्मीद है कि बिहार सरकार इसे अपनी नई स्टार्टअप पॉलिसी में शामिल कर उन्हें आर्थिक व तकनीकी मदद देगी जिससे कि उत्तर बिहार में विशेषकर जहाँ जलकुंभी का अत्यंत प्रकोप है इसका दोहन कर अधिक से अधिक लाभ लिया जा सके।यहाँ यह बताते चलें कि आद्या ने इस कुटीर उद्योग का नाम मेटेका वेंचर्स रखा है ।मेटेका एक आसामी शब्द है, आसामी में जलकुंभी को मेटेका कहते हैं। इस मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में स्वर्णिमा कुमारी, कवि सुभाष चन्द्र झा, मोदीक पाठक, सिंघिया पश्चमी पंचायत के मुखिया अमरेश झा, मोहम्मद इरफान विकास कुमार ठाकुर, विवेक कुमार सहित अन्य लोग मौजूद थे।