भूगोल विभाग द्वारा ‘प्राकृतिक आपदा प्रबंधन’ विषय पर संगोष्ठी एवं पौधारोपण कार्यक्रम आयोजित
दीप प्रज्वलन करते
बेनीपट्टी
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा की अंगीभूत इकाई कालिदास विद्यापति साइंस काॅलेज, उच्चैठ, बेनीपट्टी, मधुबनी के प्रांगण में प्रधानाचार्य डॉ० शुभ कुमार साहु की अध्यक्षता एवं निर्देशन में एन. एस. एस. प्रभारी डा० दीपक कुमार दास के नेतृत्व में विभिन्न पौधों का रोपण कार्यक्रम प्रधानाचार्य, महाविद्यालय परिवार एवं विशिष्ट अतिथि डा० अनुरंजन, स्नातकोत्तर भूगोल विभाग तथा मुख्य अतिथि डा० संतोष कुमार, स्नातकोत्तर भूगोल विभागाध्यक्ष, लनामिवि, दरभंगा द्वारा किया गया। तत्पश्चात एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन भूगोल विभाग के तत्त्वावधान में ‘प्राकृतिक आपदा प्रबंधन’ विषय पर प्रधानाचार्य की अध्यक्षता एवं भूगोल विभाग के प्राध्यापक डा० मणि राम पाल के संयोजकत्व में आयोजित की गई। कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों का मिथिला की परंपरानुसार पाग-दोपटा से सम्मान एवं दीप प्रज्वलन, डा० ज्योतीन्द्र कुमार द्वारा सरस्वती वंदना तथा भगवती गीत ‘जय-जय भैरवि’ कुमारी लता, सोनी कुमारी, छोटी कुमारी, उषा कुमारी की प्रस्तुति से हुआ।
अतिथियों के स्वागत में काजल, नेहा, रूबी, रागिनी, मोमिना, निशा आदि छात्राओं द्वारा स्वागत गीत प्रस्तुत की गई। स्वागत एवं विषय प्रवेश संयोक डॉ० मणि राम पाल ने कराया। विशिष्ट अतिथि डॉ० अनुरंजन ने कहा कि पर्यावरण असंतुलन के कारण ही आपदाएं उत्पन्न होती है। पृथ्वी के अंतर्जात बल के कारण सदैव से ही भूकंप, ज्वालामुखी, भूस्खलन, सुनामी आदि जबकि बहिर्जात बल एवं अनापेक्षित मानवीय हस्तक्षेप के कारण बाढ़, सुखाड़, हिमस्खलन आदि आपदाएं घटित होती रहती है। प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं। परंतु इनके प्रभाव को कुछ सीमा तक कम किया जा सकता है।
प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए यथासंभव प्राकृतिक वातावरण को अक्षुण्ण रखा जाय। भारत के विभिन्न राज्यों में राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल की स्थापना की गई है जिसका नीति वाक्य ‘आपदा सेवा सदैव’ है। मुख्य अतिथि डा० संतोष कुमार ने कहा कि प्राकृतिक आपदाओं की घटना भूगर्भीय हलचल एवं मानवीय अवरोध के कारण पर्यावरण के असंतुलित होने से घटती है जिसे रोक पाना तो असंभव है लेकिन हम अपनी सूझबूझ और आवश्यक उपाय से इससे होने वाली क्षति में कमी लाने का प्रयास कर सकते हैं। इसके के लिए सबसे आवश्यक है संतुलित पर्यावरण। पर्यावरण प्रदूषित कम हो इसके लिए पौधारोपण सबसे जरूरी है। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रधानाचार्य डा० शुभ कुमार साहु ने कहा कि मुख्यतः प्राकृतिक आपदाओं बाढ़, भूकम्प, सूखा, भूस्खलन, तूफान, सूनामी, हिमस्खलन, बादल का फटना आदि आते हैं। प्राकृतिक आपदा एक बहुत ही भयानक और खतरनाक घटना है जो अचानक से होती है और जिसके परिणामस्वरूप आमतौर पर घरों, संपत्ति, माल-जाल और कई अन्य प्रकार की क्षति होती है तथा इसके कारण कई मौतें भी होती है। आपदा प्रबंधन प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं के दौरान जीवन और संपत्ति की रक्षा करने के लिए विशेष तैयारी की प्रक्रिया है जो सीधे खतरे को खत्म नहीं करता बल्कि यह योजना बनाकर जोखिम को कम करने में मदद करता है।
आपदा प्रबंधन योजनाओं में बाढ़, तूफान, आग, महामारी का तेजी से फैलना और सूखा जैसे मुद्दों को योजना में रखा जाता है ताकि आपदा की स्थिति में उन्हें तुरंत जमीन पर लागू किया जा सके। इसका मुख्य कारण मानव द्वारा पर्यावरणीय संसाधनों का अधिकाधिक विदोहन और दुरूपयोग है जिसे कम करने की आवश्यकता है। संगोष्ठी में डॉ० श्याम कुमार ठाकुर, डॉ० अंजित कुमार ठाकुर, डॉ० राजा साहु, डॉ० ज्योतीन्द्र कुमार, डॉ० नीलमणि झा, डॉ० विघ्नेश चन्द्र झा, डॉ० सुशांत कुमार चौधरी, डाॅ० कन्हैया कुमार, डाॅ० उदय कुमार साह, प्रो० प्रीति रंजन, डा० अवधेश कुमार, डाॅ० अभय कृष्ण, डाॅ० अभिमन्यु कुमार, डा० सौरभ रौशन ठाकुर, प्रो० फरह मोईद आदि प्राध्यापक-प्राध्यापिकाएं अपने विचार प्रस्तुत किये। इस अवसर पर श्री सत्यम, रबीन्द्र झा, नारायणजी झा, शैलेन्द्र कुमार सिंह, देवेन्द्र झा, राघवेन्द्र पाठक, माधव झा, शंकर कामत, छवि चन्द्र झा की सराहनीय सहभागिता रही। संचालन डा० मणि राम पाल एवं धन्यवाद ज्ञापन डा० ज्योतीन्द्र कुमार द्वारा दिया गया।