दीपावली और डाला छठ को लेकर कुम्हारों की चाक में पकड़ी रफ्तार
चाक चलाता कुमाढ
मधुबनी से मोहन झा
दीपावली डाला छठ तथा देवदीपावली को लेकर दीपों के बनाने के लिए कुम्हारों का चार्ट तेजी से घूमने लगा है। इन तीन महत्वपूर्ण त्यौहार को लेकर जिसमें मिट्टी के दीए की मांग काफी बढ़ जाती है। इसको लेकर अपने पुश्तैनी धंधे से जुड़े कुम्हार समाज के लोग मिट्टी के छोटे-छोटे दीप बनाने के कार्य में जुट गए हैं। बढ़ती हुई महंगाई और चाइनीज झालरों से फटे बाजार के कारण मिट्टी के दीपक की लौ केवल खानापूर्ति के लिए ही जल रही है। जिससे कुम्हारों के पुश्तैनी धंधे पर भी असर पड़ता नजर आ रहा है। इस समस्या का पड़ताल राष्ट्रीय सहारा द्वारा खजौली प्रखंड के स्थानीय ठाहर गाव में राष्ट्रीय सहारा के संवाददाता द्वारा परताल किया गया तो बाते जो सामने आई तो इससे यह स्पष्ट हो गया कि लाख महंगाई के बावजूद भी कुम्हार समाज अब भी अपने पुश्तैनी धंधे से ही अपनी जीविका चला रहे हैं।
इस बाबत पूछे जाने पर 40 वर्ष से अपने पुश्तैनी धंधे से जुड़े कपिलेश्वर पंडित एंव धनराज पंडित ने बताया की दीपावली को लेकर फिलहाल कच्चे दीपों का निर्माण किया जा रहा है। जो सुखाने के बाद आवा में पकाया जाएगा मिट्टी की उपलब्धता के विषय पर उन्होंने बताया कि मिट्टी के बर्तन और दीया को बनाने के लिए विशेष तौर पर मिट्टी हम लोग खरीद कर लेते हैं। जोकि तीन हजार रुपए प्रति टोली के दर से खरीदा जाता है। वही मिट्टी की शुद्धता के लिए गंगा नदी से मिट्टी लाकर मिलाने के बाद मिट्टी के पात्रों और दीपक का निर्माण किया जाता है। जिसमें मिट्टी के निर्माण पत्रों की शुद्धता धार्मिक अनुष्ठान में भी बनी रहे वह इस को पकाने के लिए उपला और लकड़ी की खरीदारी भी मंहगे के दाम पर किया जाता है।