उच्चैठ भगवती स्थान से कोई भी श्रद्धालु भक्त खाली हाथ वापस नहीं लौटता, श्रद्धा और विश्वास से पूजा अर्चना करने पर सभी मनोकामना पूर्ण करती है छिन्नमस्तिका उच्चैठ भगवती, भगवान रामचंद्र अपने गुरु वशिष्ठ जी के साथ चारों भाई आए थे देवी दर्शन में,
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उच्चैठ भगवती
अर्जुन तपस्या से पहले की थी देवी का दर्शन,
आदि शंकराचार्य ने भी किया था देवी का दर्शन,
कलुआ माता के आशीर्वाद से कालिदास बना था।
सैकड़ों ऋषि-मुनियों ने तपस्या की थी देवी दर्शन के बाद इसी स्थान पर,
52 शक्तिपीठों में एक शक्तिपीठ है उच्चैठ भगवती स्थान
मधुबनी से मोहन झा
विश्व विख्यात छिन्नमस्तिका उच्चैठ भगवती स्थान मै शारदीय नवरात्रा को लेकर दर्शन के लिए देश विदेशों से श्रद्धालु भक्तों की भीड बढ़ती जा रही है। सिद्ध पीठ छिन्नमस्तिका उच्चैठ भगवती स्थान प्राचीन काल से ही देव ग्रंथों में काफी महत्वपूर्ण और आस्था का केंद्र माना जाता रहा है। सिद्ध पीठ उच्चैठ भगवती स्थान कई महत्वपूर्ण मामले में आस्था का केंद्र है, जो ग्रंथों में उपलब्ध है । कहा जाता है कि रामायण काल में जब सीता स्वयंवर जनकपुर धाम में आयोजित की जा रही थी और रामचंद्र अपने गुरु वशिष्ट जी के साथ चारों भाई जनकपुरधाम जा रहे थे तो उक्त सिद्ध पीठ छिन्नमस्तिका उच्चैठ भगवती का दर्शन और पूजा अर्चना किए थे। इसी तरह कहा जाता है कि मूर्ख कलुआ उच्चैठ भगवती देवी के वरदान से ही विश्व विख्यात कालिदास बन गया। वही कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य भी छिन्नमस्तिका उच्चैठ भगवती स्थान आकर देवी का पूजा अर्चना किए थे । जिसका इतिहास आज भी स्थान पर विभिन्न प्रतिमाओं के माध्यम से स्पष्ट होता है । प्राचीन काल से ही उच्चैठ काफी आस्था का केंद्र रहा है।
उच्चैठ छिन्नमस्तिका भगवती के दर्शन करने से ही सभी पापों का नाश होना और परिवार में सुखी समृद्ध प्रगति के मार्ग बढ़ता है। भगवती स्थान पर प्राचीन काल में ही कई ऋषि-मुनियों ने देवी की दर्शन के पश्चात कई सिद्धी, तंत्र मंत्र योग ट्यून करते रहे हैं । स्थल सिद्ध पीठ होने के कारण शक्ति स्वरूपा देवी के मानता प्राप्त है यहां श्रद्धालु वक्त जिस मन से अपनी मनोकामना करते हैं उनका मनोकामना भगवती पूर्ण करती है। यहां के पंडितों के द्वारा कहा जाता है कि इस स्थल से कोई खाली हाथ वापस नहीं जाता। श्रद्धा आस्था के साथ पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
उच्चैठ भगवती स्थान में पूरे वर्ष मानता के अनुसार बलि प्रदान का प्रथा चलते आ रहा है जो आज तक चल रहा है। महा अष्टमी के दिन चांदपुरा गांव से सैकेंडौ छागर की बलि प्रधान भगवती स्थान में किए जाते हैं। उक्त समय मंदिर परिसर खून से लाल होकर तालाब में खून जाता है कहने का मतलब है की एक साथ 500 से अधिक बलि प्रदान किए जाते हैं जो देखने के लिए हजारों की भीड़ जुटती है। उसे देवी स्थान में कुंवारी कन्या का भोजन कराना शुभ माना गया है। जिसके कारण प्रत्येक दिन सैकड़ों कुमारी कन्या का भोजन कराया जाते हैं विभिन्न श्रद्धालुओं के द्वारा। इसी तरह प्रत्येक दिन संध्या आरती से पहले महिलाओं के द्वारा दीप जलाने का प्रथा भी काफी प्रचलित है गांव गांव से महिलाएं दीप जलाने के लिए देवी स्थान पहुंचती है। सिद्धि प्राप्त करने के लिए भक्तों के द्वारा यहां विभिन्न प्रकार से पूजा पाठ की जाती है जहां तंत्र मंत्र का भी सिद्धि होती है। कहां तो यहां तक जाता है कि जब पांडव पांचों भाई यहां आकर पूजा अर्चना किए थे। उच्च देवी स्थान काफी आस्था का केंद्र है यहां भक्तों के सभी मन कामनाएं पूर्ण होती है।