अकौर माँ भागवती भुवनेस्वरी का ,जहाँ होती है तन्त्र विधि से पूजा,माँ के दरबार में निष्ठां पूर्वक पूजा अर्चना करने से होती है मनोकामनाएं पूर्ण
भव्य आकर्षक सजावट मंदिर
मधुबनी से मोहन झा
मधुबनी जिला मुख्यालय से लगभग अकौर भगवती स्थान 23 और 27 किलोमीटर गांव धकजरी अकौर और बेनीपट्टी अकौर पथ विंदू पर यह गांव स्थित है। इस अंकुरित पिंडी स्वरूप भगवती को यदि ध्यान (आख्यान) से देखा जाए तो पता चलता है कि उसमें ॐ की आकृति साफ झलकती है। ऐसा माना जाता है कि मां ॐकारेश्चरी का मुला धार पीठ होने के कारण ईसवी सन् के आरंभ से हजारों वर्ष पूर्व से ही यह स्थान देश दुनियां के प्रसिद्ध रहा है। वैसे इस विषय में कुछ पुरातत्व विभाग के शोध कर्ताओं के शोध से यह पता इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि यह अकौर वस्ती इस अंकुरित देवी के अंकुर फिर उसका पीठ होने के कारण ॐ कार और भगवान शिव के द्वारा शती के जमीन पर परे हिस्से को कोरने खोदने के कारण अंगकोर तथा कोरने में सफल न होने के कारण अकोर अर्थात जो कोरा नही गया के नाम से प्रसिद्ध पाता रहा। बाल्मीकिरामायण में अलर्क नामक राजा द्वारा धरती में दवा दिए जाने का वर्णन मिलता है जिसके आधार पर सम्राट विक्रमादित्य ने यह खजाना प्राप्त किया और इस स्थान का नाम अपने जीवन काल में”आकर”कर दिया था। राजा शिव सिंह के काल में एक घटना विशेष के कारण इस “अकर”घोषित कर दिए जाने की वजह से अंग्रेज़ो के समय उच्चारण दोषों की वजह से इस वस्ती का नाम अकौर होकर रह गया जैसा कि सन 1901 की सरकारी सर्वे खतीयान को देखने से यह स्पष्ट होता है।
मां भगवती
हालांकि इतिहास कार जो भी कहे परन्तु स्थानीय निवासियों का कहना और धारणा यह है कि यह स्थल जनक राजाओं की मूल राजधानी का हिस्सा था और देवी ॐ कारेश्चरी जनक राजाओं की कुल देवी थी जो मां भगवती के 52 वें पीठ है।ग्रामीण पंडित पंकज झा शास्त्री ने बताया कि इस शक्ति पीठ का वर्णन कोलो के कुलानी तंत्र, तंत्र महार्णव, तंत्र सार, तंत्र माल, डामर तंत्र आदि के ग्रंथों के साथ साथ धर्म शास्त्र और अन्य धार्मिक पुस्तकों में साफ मिलते है।
इस वस्ती से वक्षराजा नदी होकर गुजरती है, वक्षराजा नदी कमला की एक छाड़न धारा है जो जय नगर से लगभग 19 किलोमीटर दूर उत्तर नेपाल में कमला के दाहिनी किनारे से निकलती है।
एक लोक मान्यता के अनुसार कमला को अविवाहित ब्रह्मण कन्या मानते है।ऐसा माना जाता है कि भगवती सीता आज भी भगवती ॐ कारेश्वरी की दर्शन करने आती है।
अकौर में ऐसा माना जाता है कि अनमोल धरोहर है जो अभी तक लापरवाही का शिकार बनी हुई है। जिसे न तो भारतीय पूरातत्व विभाग और न राजकीय पुरातत्व निदेशालय ने ही कभी वैध खुदाई की प्रयत्न किया। जिसका परिणाम अवैध खुदाई से प्राप्त बहुत ही दुर्लभ एवं बहुत ही कीमती सामाग्री चोर और तस्कर के हत्थे जा रही है।ऐश्वर्य देवी, आध्यात्मिक, भावनात्मक है इसलिए उसके आनन्द की अनुभूति उसी अनुपात से अधिक होती है। भुवन भर की आनन्दभूति का आनंद जिसमें भरा हो उसे भुवनेश्वरी कहते है।इस अकौर गांव में अंकुरित पिंडी स्वरूप भगवती जो ॐकारेश्चरी , भुवनेश्वरी और अकौर भगवती के नाम से जानी जाती है। गांव के ग्रामीण पंडित पंकज झा शास्त्री ने बताया यह लोगों के लिए आस्था और विश्वास का केंद्र बना हुआ है। यहां निष्ठा से आने वाले भक्तों की सभी मनोवांक्षित कामना पूर्ण होती है।बांझन महिलाएं यदि यहां पूर्ण आस्था और विश्वास के साथ आती है उसे माता आंचल भर देती है। दूर दूर से तंत्र सिद्धि प्राप्ति के लिए भी भक्त आते है।दुर्गा पूजा में और अधिक हजारों की संख्या में दूर दूर से भक्त आते है। यहां बलि प्रदान की परम्परा भी सदियों से चली आ रही है।
आस्था एवं विश्वास के साथ निष्ठा पूर्वक जो मां को पुकारता है तो