भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती है रहिकेश्वरी दुर्गा मां भगवती,
मां भगवती रहिकेश्वर दुर्गा
1-अंकुरित अष्टभुजी दुर्गा मां रहिकेश्वरी का प्राचीन मंदिर श्रद्धा का केन्द्र बिन्दु।
2-मंदिर प्रांगण में आश्विन मास में हर साल होती है नवदुर्गा की स्थापना।
3-मिथिला के नामचीन पंडितों द्वारा लिपिबद्ध हस्तलिखित पद्धति से होती है पूजा।
मधुबनी से मोहन झा
जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर की दूरी पर रहिका गांव स्थित माता रहिकेश्वरी दुर्गा मंदिर वर्षों से लोगों की आस्था व श्रद्धा-विश्वास का केंद्र बिन्दु बना हुआ है। मां रहिकेश्वरी की अराधना करने वाले भक्तों का विश्वास है कि इनके दरबार में मुंह मांगी मुराद पूरी होती है और यहां से कोई भक्त खाली हाथ नहीं जाता। अष्टधातु निर्मित अंकुरित भगवती की अभयदानी प्रतिमा सदैव अपने भक्तों को आशीर्वाद देकर अनुग्रहित करती हैं। माता का स्वरुप अष्टभुजी दुर्गा का है तथा मां शेर पर सवार महिषासुर मर्दिनी की मुद्रा में हैं।
वैसे तो सालों भर यहां सुदूरवर्ती गांवों से भक्तों के आने का सिलसिला लगा रहता है। लेकिन आश्विन मास के शारदीय नवरात्रि में यहां होने वाले नवदुर्गा की हर साल पूजा अर्चना को लेकर यहां भक्तों की काफी भीड़ एकत्र होती है। और ग्रामीण श्रद्धा भक्तिपूर्वक पूजा इस पूजा में भाग लेते हैं। यहां की पूजा पद्धति भी मिथिला क्षेत्र के अन्य पद्धतियों से बिल्कुल अलग है। यहां मिथिला के तत्कालीन नामचीन पंडितों द्वारा हस्तलिखित लिपिबद्ध पूजा पद्धति से ही नवदुर्गा की विशेष विधि से पूजा की जाती है। यहां कलश स्थापना के साथ ही संध्याकालीन आरती के समय हजारों लोगों की भीड़ जमा होती है।
हजारों भक्त यहां माता रहिकेश्वरी की अराधना कर मनोवांछित फल का लाभ पाते हैं।
यहां स्थापित प्रतिमा के संबंध में मिथिला सेवी ग्रामीण मनोज झा ने बताया कि सैकड़ों वर्ष पहले एक ग्रामीण परिवार के स्वप्न में आकर माता ने अपने मिट्टी के नीचे दबे होने की बात कही। जहां खुदाई के क्रम में माता का अवतरण हुआ। जिसे बाद में संबंधित परिवार के लोगों ने इनकी स्थापना कर इसे मंदिर का रुप दिया। जहां अब वर्तमान में मां रहिकेश्वरी का भव्य मंदिर विराजमान है। जहां उसी परिवार के पुरोहित और माता द्वारा स्वप्न में दर्शाए गए पुजेगरी परिवार के लोगों द्वारा इनकी पूजा किए जाने की परंपरा अनवरत चली आ रही है। रहिका गांव के मनोज झा ने भगवती मंदिर के बारे में विस्तार से जानकारी दी।