संसद में संस्कृत को लेकर दिये गये अनर्गल बयान के लिए दयानिधि मांगे माफी
प्रेस को जानकारी देते संस्कृतभारती के प्रान्तप्रचारप्रमुख डॉ.रामसेवक झा
मधुबनी
संसद में डीएमके नेता दयानिधि मारन द्वारा संस्कृत भाषा के विरुद्ध दिए गए अपमानजनक बयान की चारों ओर निन्दा हो रही। शनिवार को संस्कृतभारती बिहार के प्रान्तप्रचार प्रमुख डॉ.रामसेवक झा ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर संस्कृत विरोधी ओछी मानसिकता बाले बयान की भर्त्सना करते हुए सदन में माफी मांगने को कहा है।उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञानपरंपरा के संरक्षण में संस्कृत भाषा की महती भूमिका है। इस भाषा का विरोध करना भारतीय संस्कृति एवं अस्मिता पर हमला करने के समान है। संस्कृत न केवल भारत की प्राचीनतम भाषा है, बल्कि अन्य सभी भारतीय भाषाओं को सम्पुष्ट करती है।डॉ.झा ने कहा कि संस्कृत केवल एक विषय के रूप में ही नहीं अपितु हिमाचल एवं उत्तराखंड राज्य की द्वितीय भाषा भी संस्कृत है।भारत सहित कई पश्चिमी देशों जैसे अमेरिका, जर्मनी,यूके आदि में संस्कृत का अध्ययन -अध्यापन शैक्षणिक एवं धार्मिक संस्थाओं में किया जाता है।उन्होंने कहा कि दयानिधि द्वारा संसद में संस्कृत को लेकर की गई अनर्गल टिप्पणी के प्रत्युत्तर में लोकसभा अध्यक्ष द्वारा जिस प्रकार से संस्कृत भाषा की महत्ता का प्रतिपादन किया गया वह वस्तुत: प्रशंसनीय एवं अभिनन्दनीय है। सरकार लगातार नीप-2020 के क्रियान्वयन एवं संस्कृत भाषा को पुनर्जीवित करने तथा इसे मुख्यधारा में लाना के लिए सकारात्मक कदम उठा रही है। इधर कुछ संस्कृत विरोधी मानसिकता बाले लोगों को यह बातें हजम नहीं हो रही है। इसलिए हम संस्कृतानुरागियों को भी एकजुट होकर इस तरह के मानसिक बाले का पुरजोर विरोध करना चाहिए।संस्कृतभारती के कार्यकर्ताओं ने संसद में दिये गये बयान को वापस लेने तथा सदन में दयानिधि को माफी मांगने को कहा। यदि ऐसा नहीं किया जाएगा तो सभी संस्कृतप्रेमी अपनी संस्कृत भाषा की अस्मिता की संरक्षण में सड़क से सदन तक आन्दोलन तेज करेगी ।