सत्यार्थ : प्रवाह : देखा देखी
मधुबनी
आर एस पाण्डेय
समय की भी दौर होती है। अच्छे लोग भी अर्धांध जैसे हो जाते हैं जो अधिकांश लोग महसूस भी करते हैं। सोचते सोचते में ऐसा कुछ करते होते हैं जिसे वे नहीं करने को सोचते होते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वे ठहर नहीं सकते। अभी धनतेरस मनाया गया और आज दीपावली है। इन पर्वों के अभिप्राय और प्रयोजन जानना जरूरी है। धन से संपत्ति और समृद्धि का आशय है। संपत्ति मतलब रुपए पैसे, सोना चांदी, आरोग्य, बुद्धि और ज्ञान, पर्यावरण, नैतिक जिम्मेदारी आदि से है। तेरस मतलब तेरह होता है । यह उन्नयन अर्थात उन्नति को रेखांकित करता है। अभी के समय में धनतेरस मात्र भौतिक धन तक सिमट गया है। कोई धन खर्च कर रंग बिरंगी खरीददारी से खुश हो रहे हैं तो कोई मुनाफा संग्रह कर खुश हो रहे हैं। खैर यह खुशी की बात है कि अत्यल्प को छोड़ बाकी तात्कालिक रूप से खुश होते हैं।
मौलिक रूप से शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक संपदा जनित खुशी आरोग्य से मिलेंगे और इसके लिए पर्यावरणीय परिस्थितियों का संतुलित एवं अनुकूल होना आवश्यक है। समाज के परिमार्जित बुद्धिमान वर्गों की जवाबदेही बनती है कि इस दिशा में जनचेतना पैदा हो सके इसका प्रयास हो ।
धनतेरस त्योहार का ऐतिहासिक आधार भी हम समग्रता में समझें जरूरी है। यह तिथि धन त्रयोदशी है। समुद्र मंथन के पश्चात् इसी तिथि को हाथ में अमृत कलश लिए धन्वंतरि ऋषि का उद्भव हुआ था। ।वे आरोग्य शास्त्र के जनक हुए और आरोग्य के सूत्र दिए ताकि जनमानस स्वस्थ बने रहें। घरेलू स्वास्थ्य बोध से हम दूर होते जा रहे हैं, परहेज और दिनचर्या के ज्ञान से वंचित हो रहे हैं, सामान्य आचार विचार का लोप होता जा रहा है, सामाजिक लोक लज्जा और लिहाज अब कल्पना की बात रह गई है अर्थात मानव मूल्यों से हम दिनानुदिन दूर होते जा रहे हैं।
सपना है कदाचित इस महान ऐतिहासिक पर्व की पृष्ठभूमि पुनः प्रतिष्ठित हो पाता तो जो इस कदाचारी और अज्ञानी सोच के कारण प्रवाह में बहकर हम विकराल महाप्रलय को निमंत्रण दे रहे हैं, शायद बच जाते और हम सबको इस धरा धाम पर मालिक का भेजना सार्थक सिद्ध होता।